आज का हमारा विषय है गुप्त साम्राज्य
गुप्त साम्राज्य का संस्थापक श्री गुप्त थे गुप्त साम्राज्य 275-550 ईसवी था|
चंद्रगुप्त प्रथम 320 से 325 ईसवी घटोत्कच के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का शासक हुआ| इसमें महाराजाधिराज की पदवी धारण की चंद्रगुप्त ने एक संपत चलाया जो गुप्त संवत के नाम से प्रसिद्ध है| गुप्त काल में केवल ब्राह्मणों को भूमि दान में दी जाती थी गुप्त काल में जिन ब्राह्मणों का गांव पर अधिकार होता था उन्हें ब्रह्म देवा कहा जाता था|
गुप्तकालीन समाज में अंतरजातीय विवाह प्रचलित थे| गुप्त काल भी नृत्य एवं संगीत में निपुण तथा काम शास्त्र में पारंगत महिलाओं को गणिका कहते थे| गुप्त काल में हिंदू धर्म की अत्यधिक उन्नति हुई इस काल में हिंदू धर्म की दो प्रमुख शाखाएं प्रचलित थी| वैष्णव और शिव गुप्त काल में त्रिमूर्ति के अंतर्गत ब्रह्मा विष्णु महेश की पूजा आरंभ हुई इसमें ब्रह्मा को सर्जन विष्णु को पालन तथा महेश को संहार का प्रतीक माना गया|
गुप्त काल में जैन धर्म को विशेष स्थान प्राप्त था| जैन धर्म को श्वेतांबर शाखा की दो सभाओं का आयोजन हुआ था| पहली सभा मथुरा में 313 ईसवी में तथा दूसरी 453 इसमें में बुलाई गई थी|
गुप्त काल बंगाल गुजरात तथा दक्षिण का कुछ ना कपड़ा उद्योग के प्रमुख केंद्र थी| गुप्त काल में पश्चिम में भरूच एवं पूर्व में ताम्र लिपि प्रमुख बंदरगाह थे गुप्त काल में घोड़ों का आरोप एवं इरान से आयात किया जाता था|
समुंदर गुप्त
चंद्रगुप्त प्रथम के पश्चात उसका पुत्र समुंदर गुप्त शासक बना वह लिच्छवी की राजकुमारी कुमार देवी से उत्पन्न हुआ| समुद्रगुप्त का शासन काल राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जाता है| समुद्रगुप्त के विषय में यद्यपि अनेक शिलालेखों स्तंभ लेख ओं मुद्राओं में साहित्य ग्रंथों से व्यापक जानकारी प्राप्त होती है| परंतु सौभाग्य से समुद्रगुप्त पर प्रकाश डालने वाली अत्यंत प्रमाणिक सामग्री प्रयाग परिस्थिति के रूप में उपलब्ध है|
समुंद्र गुप्त गुप्त वंश का एक महान योद्धा तथा कुशल सेनापति था इसी कारण उसे भारत का नेपोलियन कहा जाता है| समुद्रगुप्त का साम्राज्य पूर्व में ब्रह्मपुत्र दक्षिण में नर्मदा तथा उत्तर में कश्मीर की तलहटी तक विस्तृत था|
किसके दरबारी कवि हरि सिंह ने इसकी सैनिक सफलताओं का विवरण इलाहाबाद प्रशस्ति में लिखा है| यह अभिलेख उसी स्थान पर खुदा है जिस पर अशोक का अभिलेख है|
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्यस समुंद्र गुप्त के पश्चात राम गुप्त नामक एक दुर्बल शासक की स्थिति की जानकारी गुप्त वंशावली में निहित है| तत्पश्चात चंद्रगुप्त द्वितीय का नाम है| चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो गया था| चंद्रगुप्त द्वितीय वैवाहिक संबंधों और विजय दोनों प्रकार से गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया था| चंद्रगुप्त द्वितीय के अभिलेखों मुद्राओं से उसके अनेक नामों के विषय में पता चलता है| उसे देवश्री, विक्रम, विक्रमादित्य, सिंहविक्रम, सिंहचंद्र, आदि नामों से अलंकृत किया जाता है|
कुमारगुप्त प्रथम
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के पश्चात उसका पुत्र कुमार गुप्त प्रथम गुप्त साम्राज्य का शासक बना कुमारगुप्त की माता का नाम दुर्ग देवी था| गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के ही प्राप्त हुए हैं कुमारगुप्त प्रथम के अभिलेखों के मुद्राओं से ज्ञात होता है कि उसने अनेक उपाधियां धारण की थी| उसने महेंद्रकुमार, श्रीमहेंद्र, श्रीमहेंद्रसिंह, महिंद्रकर, और गुप्त कूल व्योम आदि उपाधि धारण की थी| उसकी सर्वप्रथम उपाधि महिंद्र आदित्य थी| कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी|
चंद्रगुप्त प्रथम
गुप्त अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त प्रथम की गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था| जिस की उपाधि महाराजाधिराज थी| चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश के द्वितीय शासक घटोत्कच का पुत्र था गुप्त वंश के प्रथम शासक का नाम श्री गुप्त था| चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त संगठन की स्थापना 319-20 में की थी गुप्त वंश में चंद्रगुप्त प्रथम नहीं सर्वप्रथम रजत मुद्राओं का प्रचलन कर पाया था|
स्कंदगुप्तपु ष्य मित्रों के आक्रमण के दौरान ही गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु हो गई थी| अतः कुमारगुप्त की मृत्यु के पश्चात उसका पिता के पुत्र स्कंद गुप्त सिंहासना रोड हुआ स्कंद गुप्त गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक था| स्कंद गुप्त ने देवराज विक्रमादित्य कर्म आदित्य आदि उपाधियां धारण की थी| विभिन्न उपाधियों के कारण नहीं ह्यूमंस श्री मूल कल्प ने उन्हें विविध आंखें कहा गया है| स्कंद गुप्त वैष्णव धर्मावलंबी था| किंतु उसने धर्म सही सुनता की नीति का पालन किया था| स्कंद गुप्त की मृत्यु 467 ईस्वी में हुई थी|
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