Skip to main content

हमारा आक्रामक व्यवहार क्यों होता है?


हमारा आक्रामक व्यवहार क्यों?


हमें जब गुस्सा आता है या किसी के प्रति रोष होता है तो हम अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है| ऐसी स्थिति में हमारा व्यापार आक्रामक हो जाते हैं| आक्रामक से हमारा क्या मतलब है? इसमें ही हम दूसरे को शारीरिक क्या मौखिक रूप से हानि पहुंचाने या उसकी चीजों को तहस-नहस करने का निश्चय करते हैं| 

अगर भीड़ में अनजाने में आपका पैर किसी दूसरे के पैर पर पड़ जाता है और आप तुरंत क्षमा मांग लेते हैं, तो आपके इस कृत्य को आक्रामक नहीं कहा जाएगा क्योंकि आपने जानबूझकर उसका पैर नहीं कुचला था|

अभी हमने आक्रामक का व्यवहार क्या होता है, उसके बारे में सिखा अब हम देखेंगे कि है यह सहज स्वाभाविक होता है या सीखा हुआ?

कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आक्रामक व्यवहार सहज होता है इसके लिए वे दो तर्क सामने रखते हैं| पहला यह आपको सब तरफ दिखाई देगा हमारे इतिहास युद्ध और संघर्षों का इतिहास है| हमारे समाचारपत्र हिंसात्मक घटनाओं से भरे रहते हैं| दूसरा आक्रामक व्यवहार पशुओं में भी देखने को मिलता है कुछ पशुओं में तो आक्रामकता इतनी होती है कि हम आक्रामकता के लिए उन पर प्रजनन करते हैं जैसे बुलडॉग, शिकारी कुत्ता जिनमें पुडल इत्यादि से ज्यादा आक्रामकता होती है| इन कुत्तों को शिकार और अपराधियों को पता लगाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है पुराने जमाने में राजा और मुर्गे बाज इत्यादि पक्षियों को आपस में लड़ाने के लिए प्रशिक्षित करते थे आक्रामकता के कारण उनकी नस्ल की रक्षा की जाती थी| दूसरी और अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि आक्रामक भावना कुंठा और संघर्ष का परिणाम है और यह प्रतिक्रिया है इसे बाहर निकालना ही चाहिए|


चलिए अब देखते हैं आक्रामकता का जैविक आधार

जैसा कि आप सभी को बताया हमारे मस्तिष्क में हाइपोपोलथैलेमस (Hypothalamus) एक विशेष क्षेत्र को हल्का सा बिजली का झटका देकर पशुओं के आक्रामक व्यवहार को उकसाया जा सकता है| प्रयोग के लिए एक बिल्ली के हाइपोथैलेमस को जब बिजली का झटका दिया गया तो उसके रोंगटे खड़े हो गए वह आक्रामक मुद्रा मे खड़ी हो गई और पिंजरे में रखी किसी भी वस्तु पर आक्रमण करने लगी|
बंदर जैसे विकसित स्तनधारियों मैं इस तरह का व्यवहार नहीं देखा गया उनका व्यवहार हाइपोथैलेमस में संवेदन की अपेक्षा पर  परमस्तिष्क से अधिक नियंत्रित होता है| संवेदना प्राप्त होने की स्थिति में हाइपोथैलेमस मस्तिष्क प्रांतसथा को यह सूचना भेजता है कि उसकी आक्रामक व्यवहार के क्षेत्र को संबोधित किया गया है| प्रांतसथा उस स्थिति में उचित प्रक्रिया का निर्णय करती है| वह एक और परिस्थितियों को देखते हैं और दूसरी और मस्तिष्क में अंकित पिछले अनुभवों को देखते हुए उचित प्रक्रिया का चुनाव करती है|

हमारे मस्तिष्क में भी ऐसे केंद्र जो हमें आक्रामक व्यवहार के लिए रुक जा सकते हैं, लेकिन वे संज्ञानात्मक नियंत्रण में रहते हैं कुछ ऐसे व्यक्ति जिनके मस्तिष्क क्षति पहुंची होती है, अपने पर नियंत्रण नहीं रख सकते ऐसे व्यक्ति उसी स्थिति में भी आक्रामक रहते हैं, जिसमें एक सामान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया सामान्य होती है| ऐसे व्यक्ति का मस्तिष्क वलकूट क्षतिग्रस्त रहता है| सामान्य व्यक्ति का आक्रामक व्यवहार प्रयास सामाजिक प्रभाव और व्यक्तिगत अनुभवों से नियंत्रण रहता है|
यदि हम आक्रामक व्यवहार को एक सिख यूं ही प्रतिक्रिया के रूप में देखे तो हम जानेंगे कि यह एक मनुष्य में आक्रामक व्यवहार सिर्फ शहद या नैसर्गिक नहीं है| यह एक व्यक्ति का व्यवहार अपने लक्ष्य में असफलता के कारण कुंठित है| हो सकता है आक्रामक ने हो, हो सकता है उसने तनावपूर्ण परिस्थितियों के साथ समझौता करना सीख लिया हो|
चलिए इस वाक्य को और स्पष्ट करते हैं हम एक उदाहरण मिलते हैं मान लीजिए आप परीक्षा की तैयारी कर रही हैं या बड़े ध्यान से कुछ पढ़ रहे हैं और इसी वक्त आपका पड़ोसी जोर से रेडियो लगा दे पहले आप शायद उससे जाकर अनुरोध करेंगे कि वह रेडियो धीमा कर दी लेकिन अगर वह दिमाग करने से इंकार कर देता है तो आपको सोचना होगा कि ऐसी हालत में क्या करें|

1) ऐसी हालत में आप गुस्से में आकर से दो चार गालियां सुना सकते हैं|

2) आप उसे मार पीट सकते हैं|

3) या फिर अपना गुस्सा पीकर जैसे गए थे वैसे ही वापस आ सकते हैं अपनी पुस्तकें उठाकर कहीं और जाकर पढ़ने की कोशिश कर सकते हैं और बाद में मूड ठीक होने पर अपने पड़ोसी से इस बारे में शांति से बात कर सकते हैं|


अब प्रश्न यह है कि आप इन तीनों में से किसका चुनाव करेंगे आपके सामने ऐसी स्थिति कई बार आई होगी और आपने इन तीनों में से कोई एक कदम उठाया होगा और जिसमें आप सबसे ज्यादा सफल रहेंगे वही कदम आप इस बार भी उठाएंगे|

आक्रामक व्यवहार एप्रिय परिस्थिति का ही परिणाम है और समूह के साथ किए गए अध्ययन में एक समूह को गर्म और दूसरे को बढ़िया काम करने के लिए बिठाया गया| कुछ समय बाद एक व्यक्ति को दोनों के साथ बारी-बारी से आक्रामक व्यवहार करने के लिए भेजा गया| जो समूह में घुटन वाले कमरे में काम कर रहा था, वह इस व्यक्ति के व्यवहार के एकदम नाराज हो गया जबकि जो बढ़िया कमरे में बैठा था उसका व्यवहार इस व्यक्ति के साथ अपेक्षाकृत शांत था| आपने देखा होगा कि अगर माता-पिता अपने बच्चों के साथ खड़ा कर बोलते हैं तो बच्चे भी वैसा ही बोलना सीख जाते हैं बच्चे बड़ों की नकल करते हैं| अगर बड़ों को
आक्रामकता से पेश आते देखते हैं तो वे आपस में दो कदम और आगे बढ़ जाते हैं जैसे एक दूसरे को डांटना, मारना-पीटना, धक्का देना, गाली गलौज करना आदि दूसरी और ऐसा देखा गया है की बच्चे बड़ों को बड़ों में आक्रामकता नहीं देखते हैं उनका व्यवहार आक्रमक नहीं होता है इससे स्पष्ट हो जाता है कि हमारा आक्रमक व्यवहार देख कर सीखी हुई एक प्रतिक्रिया है और परिणाम के अनुसार यह बढ़ता है या घटता है| उदाहरण के लिए जो दूसरे लड़कों से ज्यादा लंबा चौड़ा है और जानता है कि वह जो कुछ चाहता है उसे दूसरों को डरा धमका कर या मार पीट कर हासिल कर सकता है तो वह बार-बार यही करेगा|

Comments

Popular posts from this blog

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग

चलिए हम अपने विषय को आगे बढ़ाते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचनाओं के प्रमुख अंगो के बारे में चर्चा करते हैं| जैसा कि हमने पहले पढ़ाई है संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शांति को बनाए रखने के लिए बनाया गया एक संगठन है इसमें कुछ प्रमुख अंग है उन प्रमुख अंगो के सभी के अलग-अलग कार्य निर्धारित किए गए हैं| इनमें सबसे पहला है संयुक्त राष्ट्र महासभा: इसके अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रीय सदस्य शामिल होते हैं सभी सदस्य देशों को महासभा में अपने अधिक से अधिक 5 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल नियुक्त करने का अधिकार है लेकिन प्रत्येक राज्य को उसमें केवल एक मत देने का अधिकार होता है आमतौर पर महासभा की वर्ष में केवल एक ही बैठक होती है जो कि सितंबर अक्टूबर में बुलाई जाती है लेकिन जरूरत होने पर उसकी विशेष बैठक भी बुलाई जा सकती हैं| इसका दूसरा प्रमुख अंग है सुरक्षा परिषद: संयुक्त राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग सुरक्षा परिषद है एक तरह से यह उसकी कार्यपालिका है इसमें अमेरिका ब्रिटेन फ्रांस रूस और चाइना नाम के पांच स्थाई सदस्य देशों के अलावा 10 स्थाई सदस्य होते हैं जो कि 2 वर्ष के...

सिंधु घाटी की सभ्यता: हड़प्पा सभ्यता

आज हम अपने भारत के इतिहास के बारे में पढ़ेंगे हड़प्पा सभ्यता जैसा कि आप सभी को पता है भारत की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता है जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है इसका काल 2500 ईसा पूर्व से 1500 पूर्व है सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट स्थान क्योंकि सभ्यता के आने से भारतीय इतिहास में मौर्य काल से पूर्व की विशिष्ट जानकारी प्राप्त होती है सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता हूं जैसे मिश्र मेसोपोटामिया सुमेर एवं कीट के समान विकसित एवं प्राचीन थी यह ताम्र पाषाण संस्कृति भी है सर्वप्रथम 1921 में राय बहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थान पर इस महत्वपूर्ण सभ्यता के अवशेषों का पता लगाया प्रारंभ में उत्खनन कार्य सिंधु नदी घाटी में ही किया गया तथा वही इस सभ्यता के अवशेष सर्वप्रथम प्राप्त हुए थे अतः इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता कहा गया परंतु इस सभ्यता के अवशेष सिंधु नदी की घाटी से दूर गंगा यमुना के दोआब और नर्मदा ताप्ती के मुहाने तक प्राप्त हुए हैं अतः पुरातत्व वेदो ने पुरातत्व परंपरा के आधार पर इस सभ्यता का नाम उसके सर्वप्रथम ज्ञात स्थल के नाम प...

16 महाजनपद व मौर्य साम्राज्य का उदय

महाजनपद युग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में 16 महाजनपदों के अस्तित्व का उल्लेख बौद्ध ग्रंथ में प्राप्त होता है | इन महाजनपदों में सर्वाधिक शक्तिशाली मगध सांग जिन ग्रंथ भगवती सूत्र भी हमें 16 महाजनपदों की जानकारी उपलब्ध कराता है| इन 16 महाजनपदों में असमक एकमात्र महाजनपद जो दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के तट पर स्थित था| छठी शताब्दी ईसा पूर्व अर्थात गौतम बुद्ध के समय 10 गण तंत्र भी स्थापित करें| 16 महाजनपदों में मुख्य रूप से काशी कौशल अंगद जी मल छेदी वत्स गुरु पांचाल मत्स्य शूरसेन अशमक अवंती गांधार कंबोज आदि नाम आते हैं| महाजनपदों को प्राय लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिको के विकास के साथ जोड़ा जाता है| ज्यादातर महाजनपदों पर राजा का शासन होता था| लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में अनेक लोगों का समूह शासन करता था इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा बना था| गण राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक सौदों पर गण के राजा सामूहिक नियंत्रण रखते थे|  प्रत्येक महाजनपद एक राजधानी होती थी जिन्हें प्राय किले से गिरा जाता था किले बंद राजधानियों के रखरखाव और प्रारंभिक से नाम और नौ...

कॉपरनिकस की क्रांति

सबसे पहले मैं आप सभी को धन्यवाद कहना चाहता हूं आपने मेरे ब्लॉग को पढ़ा और कई लोगों के मुझे ईमेल भी मिले इनमें कई विद्यार्थियों ने मुझे कहा कि मैं अपने Astronomy के ब्लॉग हिंदी में लिखूं| तो लीजिए उन सभी के लिए मेरी तरफ से एक दिलचस्प व मजेदार टॉपिक, आज हम बात करेंगे "कॉपरनिकस की क्रांति के बारे में" जैसा कि आप सभी को भी दें कॉपरनिकस एक महान वैज्ञानिक थे| उन्होंने हमारे ब्रह्मांड के बारे में हमें बहुत कुछ बताया है कोपरनिकस के मॉडल में सूर्य ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित था| बुध शुक्र अपने चंद्रमा सहित पृथ्वी मंगल बृहस्पति और शनि वृत्ताकार कक्षाओं में सूर्य के चारों ओर घूमते थे इस मॉडल में भी तारे पृष्ठभूमि में एक गोले पर स्थिर माने गए कोपरनिकस का विश्वास था कि सभी ग्रहों का आकार एक समान था, ग्रहों की गति को समझने में यह मॉडल टॉलमी  के मॉडल जितना ही कारगर साबित हुआ, इस मॉडल का टकराव भू केंद्रित मॉडल से हुआ और यह तब तक सार्वजनिक रूप से नहीं स्वीकारा गया जब तक Galileo तथा कैपलर के कार्य ने इसे सही प्रमाणित नहीं कर दिया| कोपरनिकस का सूर्य केंद्रित मॉडल गैलीलियो Galileo के खग...

Nebular Theory

NEBULAR THEORY, Nebular Theory, a theory advanced to account for the origin of the solar system. It is emphatically a speculation; it cannot be demonstrated by observation or established by mathematical calculation. Yet the boldness and the splendour of the nebular theory have always given it a dignity not usually attached to a doctrine which from the very nature of the case can have but little direct evidence in its favour. The nebular theory offers an explanation of this most remarkable uniformity. Laplace supposed the existence of a primeval nebula which extended so far out as to fill all the space at present occupied by the planets. This gigantic nebulous mass, of which the sun was only the central and somewhat more condensed portion, is supposed to have a movement of rotation on its axis. There is no difficulty in conceiving how a nebula, quite independently of any internal motion of its parts, shall also have had as a whole a movement of rotation. In fact a litt...